मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और समाजवाद


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और समाजवाद

विभिन्न समाजवादी विचारक अलग-अलग लोगो को समाजवादी विचारधारा का नायक मानते हैं जिसमें भारत से लेकर विदेशों तक के बहुत से नाम है परंतु मेरा व्यक्तिगत मानना है कि भारतीय संस्कृति में ही समाजवादी विचारधारा का मूल है और समाजवाद की शिक्षा मिलती है व मुखयतः भारतीय संस्कारों में ही  समाजवादी  विचारधारा के साथ जीने की प्रेरणा मिलती है उदाहरणतः मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवनकाल व चरित्र भी एक बड़ी प्रेरणा है भगवान श्रीराम ने अपने पूरे जीवन काल में समाजवाद को चरितार्थ किया है और बहुत बड़ी प्रेरणा समानता की विचारधारा के लिए साबित हुए हैं राम ऊंच-नीच, छोटे-बड़े और राजा-प्रजा का भेद नहीं मानते। वह समदर्शी हैं और सच्चे अर्थों में समाजवादी हैं। जो व्यक्ति उनके संपर्क में आता है, वह उसे दिल से अपनाते हैं। जो उनके लिए एक-एक कदम आगे बढ़ाता है, वह उसके लिए दस कदम आगे बढ़कर उसे गले लगाते हैं।
राम के राज्याभिषेक की घोषणा की सूचना मिलने पर राम सोचते हैं कि हम सब भाई एक ही साथ जन्में, खाना, सोना, लड़कपन के खेलकूद, कर्णछेदन, यज्ञोपवीत और विवाह आदि उत्सव सब साथ-साथ ही हुए। पर इस निर्मल वंश में एक यही अनुचित बात हो रही है कि और सब भाइयों को छोड़कर राज्याभिषेक एक बड़े भाई का ही अर्थात् मेरा ही हो रहा है। अपने भाइयों के बारे में राम का ऐसा कहना उनका समदर्शी और समाजवादी होना सिद्ध करता है।
वन जाते समय वह श्रृंगवेरपुर जाते हैं। उस पुर का राजा निषादराज गुह उनके स्वागत के लिए आता है। यह जाति उस समय अछूत मानी जाती थी। लेकिन राम जात-पात का भेद भूलकर उनके प्रेम को सम्मान देते हैं तथा उन्हें सिर्फ एक मनुष्य के रूप में देखते हैं। वह गुह द्वारा कुश और कोमल पत्तों से बनाई हुए सांथरी पर बैठते हैं और सोते हैं और उसके द्वारा दोनों में दिए गए फल खाकर पानी पीते हैं।
केवट भी उस समय के अनुसार अनुसूचित जाति का था। श्रीराम उस अछूत केवट को उसकी विनती पर अपने पैर धोने का सौभाग्य देते हैं। इसके अलावा राम नीच कुल में पैदा हुई शबरी के आश्रम में आते हैं। वह राम के गुणों की बहुत बड़ी प्रशंसक है। वह अपने बारे में स्वयं कहती हैं-

           केहि विधि अस्तुति करौं तुम्हारी।
            अधम जाति मैं जड़मति भारी।।

उन्हीं शबरी से राम कहते हैं- हे भामिनी सुनो! मैं जाति-पाति, कुल, धर्म, धन, बल, कुटुम्ब, गुण और चतुरता इन सबको महत्त्व नहीं देता। मैं तो एक प्रेम का नाता मानता हूं-

           कह रघुपति सुनु भामिनी बाता।
            मानउं एक भगति कर नाता।।

भगवान के साथ वास्तविक संबंध वही है, जिसमें उनसे कुछ भी मांगा न जाए। यदि मांगा भी जाए तो बस उनके चरण कमलों में स्थान की याचना की जाए।
सच्चे समाजवाद का पाठ हमें राम से सीखना चाहिए, जिन्होंने शोषित और पद दलित लोगों को गले लगाकर उन्हें समाज में प्रतिष्ठा दिलाई। समय आने पर वह उनके काम आए और उनके जीवन स्तर को उठाने में अपने पूरा जीवन लगा दिया।

भगवान श्री राम समाजवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है ,जात पात के बंधन भूलकर ऊंच-नीच की बेड़ियों को तोड़कर कट्टरपंथ और संप्रदायवाद को नकार कर समाज में एक समानता के साथ जीवन यापन कर ही रामराज्य कायम किया जा सकता है

                                         द्वारा:-  गौरव जैन
                                     मो.:- 9455148038

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